Monday 12 July 2010

तुम

मेरे दिल में क्या है जो तुम देख पाते
खुदा की कसम तुम न यूँ रूठ पाते

तुम जो गए हो तो दिल है ये सूना
क्यूँ इतनी थी जल्दी कुछ तो बताते

है बेचैन दिल ये , नहीं चैन इसको
करें क्या हम कुछ समझ ही न पाते

तनहाइयों के रंग बड़े ही अज़ब हैं
जुदाई सहें कैसे हमें तू ही बता दे

अब छा गया है मेरे हर सू अँधेरा
खुशियों को तुम बिन कैसे सदा दें

तुम ही हो साज इस जीवन के मेरे
"कादर" कैसे सजें सुर तू ही बता दे

केदारनाथ"कादर"
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Sunday 11 July 2010

उससे पंजा लड़ाते हैं


आओ खेलें खेल नया हम , उससे पंजा लड़ाते हैं
दर्द को दर्द न समझे हम, दर्द में भी मुस्काते हैं

खून जलाकर रस्ता देखा, हमने उसके आने का,
मेरे इस पागलपन पर लोग, मेरी हंसी उड़ाते हैं

मेरी मुर्दा ख्वाहिशों से और मेरे टूटे सपनों से
बिना इल्म-ए-इश्क किये, दुनिया वाले घबराते हैं

रात अँधेरी आँचल में, दिन का सन्देशा लाई देखो
हिम्मत वाले ही यहाँ पत्थर को मोम बनाते हैं

होश होश जो रटते रहते , सदा होश खो जाते हैं
मनमौजी हैं गर्दिश मैं भी हम तो मौज मानते हैं.

माना खुदा है सबका मालिक हम भी कम तो नहीं
सौ-सौ टुकड़ों में बंटकर हम सौ-सौ रूप दिखाते हैं

माना तूने ही है रचा हमें, तुझसे ही पंजा लड़ाते हैं
तेरे दर्द को दर्द न समझे , दर्द में भी मुस्काते हैं


केदारनाथ "कादर"
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तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा
ये धरती सुलगती, तेरी रहमत के बिना
तू ही मालिक विधाता, तेरा ही सारा जहां
भूख से मरते क्यूँ तेरे बन्दे, ये बता
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

तूने ही बख्शी थी,स्वर्ग सी हमको जमीं
गोलियां हैं खून है, रोज़ ही मातम यहाँ
चंद सिक्कों की खातिर, बिका उनका इमां
अब वहां पर नमाजों की जमाते हैं कहाँ
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

तेरा कहर ये नाजिल किस तरह हुआ
है कहीं सैलाब, नहीं कहीं कतरा यहाँ
मर गए प्यासे कहीं , कहीं दरिया बना
कर रहा है क्या तू मौला, कुछ तो बता
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

उजड़े घर यहाँ लाखों, तेरे तूफान से
बन्दे शैतान हो गए तेरे, ईमान से
नन्ही कलियों पर हवस हाबी हुई
बन गया बन्दा तेरा, कैसे हैवान सा
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

मंदिर नहीं, मस्जिद नहीं, गिरजा नहीं
अब तेरे गुरुद्वारे भी यहाँ बाकि नहीं
कुदरती काबा भीतेरा अब बिकने लगा
हर जगह पे पसरा जुर्म का साया यहाँ
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

जितने भी तेरे रूप हैं सब में तू आ
राम, हजरत,जीसस या नानक बनके आ
जो भी बनना है बनके , जल्दी से आ
तेरे बन्दों का अब तो अकीदा उठ चला
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

तस्वीर धुधली हो रही रहमत की तेरी
अब लगा न फरियाद तू सुनने में देरी
अब ये जीवन लगने लगा है इक सजा
जल्दी आ जल्दी आ, बस यही इल्तजा
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा




केदारनाथ "कादर"
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बंजर बढ़ता, बाढ़ है आती, ऐसा भैया जान
आँख पे पट्टी बांधे बैठा, पढ़ा लिखा इन्सान

जंगल काटे, वन घटाए, पैसा खूब कमाए
प्रकृति के आँचल को नोचे, कैसा है हैवान

पर्वत नंगे, नदियाँ प्यासी, सूखा है मैदान
अरे जाग जा भूल मान ले, न बन नादान

बांध बनाकर , तुम गले न नदियों के घोंटो
रुके जल से बढती गर्मी, जानो ये इन्सान

पूरी धरती अपना घर है, बनो न बेईमान
बृक्ष उगें वन बचें , हो नदियों का सम्मान

अभी समय है भूल सुधारो बनो नहीं नादान
"कादर" आँखें बंद रखीं तो होगा बस शमशान


केदारनाथ "कादर"
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ये तेरा लालच, ये मेरा लालच
जीवन कितने ही लील गया

न जागे लालच की नींद से
न कर्त्तव्य का ही भान रहा

तुम हो अफसर बैठे AC में
न पदगरिमा का ध्यान रहा

अब कर्मों की खेती में लाशें
देख के मन क्यूँ हैरान रहा

क्या पाया करके ये प्रपंच
क्यूँ अब हाथों को मल रहा

तेरे अपने भी अब हैं फंसे
क्यूँ सोच में मन जल रहा

कितना बड़ा अपराध सोच ले
पैसों की खातिर करता रहा

क्या हासिल हुआ इस चोरी से
"कादर" मन तो तेरा शमशान रहा

केदारनाथ "कादर"
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Wednesday 7 July 2010

दुःख


मेरे दुःख अपने तुम्ही हो , तुम से ही जीवन सजाया
सुख के पंछी उड़ ही जाते, तुमने ही बंधन निभाया

इस व्यथा से था परिचित, कुछ भी स्थिर नहीं था
इस लिए मेरे प्रिये दुःख , दिल के पालने में बिठाया

तुम रहे जब पास में, मैंने सार्थक मधुमास पाया
तुमने अनुभव कराया, क्या सुखों की होती छाया

मीत हो मेरे ह्रदय के , न तुम्हे मैं त्यज सकूँगा
तेज तेरे ही कारण , मेरे मुख मंडल पे छाया

माना पीड़ा है मगर , तुम से सुख का प्रसव पाया
"कादर" दुःख जिवंत पथ है, करता पगपग उजारा.

केदारनाथ "कादर"
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