Wednesday 30 June 2010
टोपी धारी किन्नर
पीटते रहो ढोल वाह वाही के
और वो तुम्हारे देश में ही
पले कुत्ते , देखें तुम्हे घूरकर
झाग उगलते चीखते चिल्लाते
कहते रहो- देश को माँ भारती
वो तुम्हारा राष्ट्रीयगान नहीं गायेंगे
पोंछेंगे तुम्हारे झंडे से अपने जूते
तुम अहिंसा का राग अलापते हो
अहिंसा कायरो को शोभा नहीं देती
तुम्हे कश्मीर में सरकार चाहिए अपनी
इसलिए बेच दी है भावनाएं देश की
तुम समझौता चाहते हो देशद्रोहियों से
कर साल अरबों रुपये लुटाते हो उनपर
वो तुमपर थूकते हैं, भागते हैं पाकिस्तान
सीखने नए पैंतरे तुम्हे काटने के लिए
तुम्हारे अपने देश के कश्मीरी बच्चे
बिकते हैं सिर्फ दो दो सौ रपये में
मारने को पत्थर तुम्हारे जवानों पर
बैठे रहो सीमाओं पर करते रहो रक्षा
बाहर को देखते हुए अपने दुश्मन
और वो साले लड़ाते रहें तुम्हें
धर्म और इस्लाम के नाम पर
वो इस्लाम का "इ" नहीं जानते
मगर जानते हैं तुम्हारी कमजोरी
जीतकर हारने की तुम्हारी आदत
देखते रहो सपना पूरे कश्मीर का
बिना कुर्वानी कुछ नहीं मिलता
शिखंडी सरकार के नुमाइन्दे सिर्फ
भौंकना जानते हैं, सिपाहियों से घिरे
कभी कुछ बोल भी दिया जोश में
आलाकमान बुलाकर धमका देती है
अरे कुर्सी से चिपके हुए पिस्सुओ
तुम से कुछ नहीं होता तो छोड़ दो
आगे आने दो हिजड़ों को भी
शायद वो ही बचा सकें देश की इज्ज़त
क्योंकि उनके मरने पर कोई नहीं रोता
अपने क्रिया कलापों से तुम ही हो
इस संसद के टोपी धारी किन्नर
केदारनाथ" कादर"
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Sunday 27 June 2010
रोको ये आरी रोको , रोको कुल्हाड़ी रोको
रोको कुल्हाड़ी रोको
न मारो पांव कुल्हाड़ी पर
तुम काट के अपने पेड़
रोको ये आरी रोको , रोको कुल्हाड़ी रोको
तुम बस दस पेड़ अपना लो
इन्हें अपना मित्र बना लो
तुम काटोगे कभी न पेड़
तुम सब ये सौगंध उठा लो
रोको ये आरी रोको , रोको कुल्हाड़ी रोको
ये पेड़ चुनर धरती की
माँ का न आँचल फाड़ो
ये घर कितने विहगों का
तुम न ये नीड़ उजाड़ो
रोको ये आरी रोको , रोको कुल्हाड़ी रोको
ये रेगिस्तान को रोक रहे हैं
ये मिल सूखा रोक रहे हैं
ये मेरी तुम्हारी सांसों में
अमृत रस घोल रहे हैं
रोको ये आरी रोको , रोको कुल्हाड़ी रोको
ये शिवशंकर हैं धरती के
co2 विष को पी रहे हैं
मानव अंत की विभीषिका
ये भरसक रोक रहे हैं
रोको ये आरी रोको , रोको कुल्हाड़ी रोको
तुम भी ये नियम अपना लो
इन्हें अपना मित्र बना लो
फल फ़ूल मिलेंगे तुमको
इन्हें जीवन पर्यन्त सम्हालो
रोको ये आरी रोको , रोको कुल्हाड़ी रोको
ये विनय है मेरी सबसे
न अपनी देह यूँ काटो
अंधी विकास की दौड़ में
भूमि न बृक्ष लोथों से पाटो
रोको ये आरी रोको , रोको कुल्हाड़ी रोको
फिर न सावन आएगा
फिर न पपीहा गायेगा
आओ "कादर" इन्हें पूजें हम
इन्हें अपना इष्ट बना लो
रोको ये आरी रोको , रोको कुल्हाड़ी रोको
केदारनाथ "कादर"kedarrcftkj.blogspot.com
"रोटियां"
जरा तुम सोच लो
अगर तुम दे न पाओगे
आम आदमी को "रोटियां"
वह भी तुम्हारी थाली को
जीभ लपलपाकर देखेगा
एकटक कुत्ते की तरह
हाँ- यही तो सच है की
भूख बना देती है आदमी को
कुत्ता और आदमखोर
अब तुम सोचो की ये कुत्ता
खा सकता है तुम्हे और
तुम्हारी औलाद को भूख में
इसलिए याद करो अपने वादे
और "कादर" दे दो उसे "रोटियां"
अपनी नस्ल बचाने के लिए
केदारनाथ "कादर"
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"अंगुलिमाल"
जनता जान पाई- तातश्री
तुम्हारी वास्तविक औकात
तुम्हारी हवस की लम्बाई
जो हजारों गुना ज्यादा है
तुम्हारे पेट की गहराई से
और लाखों गुना बड़ी है
तुम्हारी खद्दरी जेब से
तुम पिस्सू से चिपके
सत्ता के स्तनों पर
आज दिखे हैं सचमुच
तुम्हारे-भेडिये से नुकीले दांत
तुम सत्ता के लिए हर सफाई
कर देना चाहते हो - चाटकर
खून की एक एक बूंद आदमी से
जिससे आदमी के अस्तित्व पर
आ गया है एक संकट
मगर तुम नेता हो , ठीक है
तुम्हारी ये सोच की
आदमी रहे न रहे जिन्दा
सरकार फिर बने इसलिए
अंगूठों की एक विशाल माला
तुम्हे जीतने को चाहिए
केदारनाथ "कादर"
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"संसद तमाशा
तुम पलते हो पांच साल तक मुस्टंडे
जो दिखाते हैं संसद में अनाचार
करते हैं दुष्कर्म -तुम्हारी भावनाओं से
तुम्हारे हक़ का हर विधेयक
वेश्यालय की मजबूर रंडी पर
उछाले गए रुपयों की तरह है
जहाँ सरकार तुम्हारी आँख के सामने
एक एक कपडे उतारकर तुम्हारे
खुद को तैयार करती है
तुम्हारे साथ दुष्कर्म करने को
तुमे ही तो चुना है अय्यासी के लिए
जो करेगी तुम्हारे पूरे जीवन काल तक
तुम्हारी अंतर आत्मा का बलात्कार
सदन की बेशर्म कार्यवाही की तरह
तुम्हें चारों खाने चित्त नंगा लिटाकर
तुम्हारे पोर पोर सुख को सोखती है
और तुम बेचारे कुत्ते से , जीभ निकालकर
बस करते हो इंतजार पांच साल
एक नए नेता से बलात्कार का
केदारनाथ "कादर"
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"सूअर -नेता "
नेता शब्द से
और ज्यादा
पगला जाता है
वह सूअरों के
आने पर खुश होकर
गली में नाचता है
वह -कहता है
नेताओं से -सूअर के बच्चे
हैं ज्यादा अच्छे
मेरी गली में आकर
सफाई कर जाते हैं
अपने स्तर की
गन्दगी खाकर
मगर नेता आकर
चुनाव के समय
बस वायदे दिखाता है
सब के सब झूठे
मांगता है भीख
तुम्हारे वोट की
यही कहते हुए
मैं -सूअर से अच्छा हूँ
केदारनाथ "कादर"
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"वोट- नेता "
चुनाव आ रहे हैं छिप जाओ
मत निकलो बाहर रूप लेकर
वह मुस्कुराकर देखेगा -गिद्ध सा
नोचने को रूप की सब बोटियाँ
ताल ठोंककर कहेगा वह
बलात्कार,वीर पुरुषों का काम है
वह नहीं डरेगा, कानून-पुलिस से और
न डरा पाएंगी सामाजिक बेड़ियाँ
सरकारी गुंडे भी भागेंगे उसे देखकर
बचाओ अपनी बहन अपनी बेटियां
कर लो हिफाजत , वोट न देना इन्हें
ये यही करेंगे पहन सत्ता की टोपियाँ
सत्ता की टोपी पहनकर होंगे जवान
निकलेगा जिस्म से इनके-हैवान
बस इन्हें इंतजार है तुम्हारे वोट का
जो खोलेगा रास्ता ये सब करने का
केदारनाथ "कादर"
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"संसद-सांसद "
बाबा, संसद बला क्या है ?
कैसे समझाउं उसे की ,
ये अज़ब माज़रा क्या है ?
यहाँ हर चोर है महफूज़
हर गुनाहे नापाक करके भी
सुप्रीम कोर्ट भी इनका गुलाम
कभी फांसी इन्हें नहीं मिलती
इनके सब हैं अजब धंधे
नहीं इन्हें व्यापर में मंदे
एक ही चुनाव में जीतकर
करोडपति बनते हैं ये बन्दे
नुमाइंदे ये जनता के
बहुत कहते हैं चिल्लाकर
मगर अपनी जनता बीच
ये सब जाने से डरते हैं
यहाँ आवाम को बेचते हैं
थोक में, पाने को पैसा
ये है बड़े बेशर्मों का जमघट
पर कभी तू लिखना न बच्चे
केदारनाथ "कादर"
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Wednesday 23 June 2010
माया
पानी, पानी बिच रहे बुलबुला , काहे ये अलग कहाए
जीवन है क्षणभंगुर ऐसा , पानी के बुलबुले के जैसा
कुछ भी अलग नहीं दोनों में, बात समझ नहीं आये
मूल में आकर मिलना है, भेदन करके रूप नए का
द्वैत मिटाना है अंतर से , यही जीवन लीला कहलाये
मूल से मिल मूल जान ले, अलग नहीं तू सत्य मान ले
अलग अलग का भान ही तेरा, "कादर" माया कहलाये
केदारनाथ" कादर"kedarrcfdelhi.blogspot .com
Monday 21 June 2010
सदा ए वक़्त
मुल्क बरबादियों से बचाया न जायेगा
किससे करें शिकायत, शिकवा, सब हैं चुप
बिन शोर नाखुदाओं को जगाया न जायेगा
माना हैं बिगड़े मुल्क के मेरे हालात दोस्तों
क्या एक नया इन्कलाब लाया न जायेगा
खुदगर्ज़ रहबरों की है बारात मुल्क में
क्या फ़र्ज़ का सलीका सिखाया न जायेगा
जब तक सुकून से नहीं मुल्क का हर शख्स
सोने का फ़र्ज़ "कादर" निभाया न जायेगा
केदारनाथ" कादर"
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(published)
Sunday 20 June 2010
वो कहती है पीता क्यूँ हूँ ?
दिल कहता है जीता क्यूँ हूँ ?
बंद करो सब भाषण अपने
मेरे मन की बात सुनो
तन मेरा जीवन मेरा है
क्यूँ इन प्रश्नों ने घेरा है ?
घर चाहत का मैंने बनाया
खुशियों से था इसे सजाया
इसमें मन का मीत लाऊंगा
मैं किस्मत से जीत जाऊंगा
पर मुझको मालूम नहीं था
था आकर्षण प्रीत नहीं थी
वह तो केवल एक पथिक थी
वह जीवन की मीत नहीं थी
अब मुझ पर हँसती है जिंदगी
अब मुझको डसती है जिंदगी
वो कहती तू रोता क्यूँ है ?
मरे बक्त को ढोता क्यूँ है ?
मैं यादों में फंसा हुआ हूँ
उन्ही दिनों में बसा हुआ हूँ
दिवास्वप्न बन एक अनोखा
मैं जीवन सपना देख रहा हूँ
पर वास्तव में उनकी नज़र में
उनके दिए दुख भोग रहा हूँ
दुख उन पर भारी न हो ये
इसीलिए मैं मय पीता हूँ
कब से मरा हुआ हूँ "कादर"
जीवन सजा ये भोग रहा हूँ
शायद उन्हें ख़ुशी मिल जाये
इसीलिए मैं मय पीता हूँ
फिर भी प्रश्न यक्ष जैसे हैं
वो कहती है पीता क्यूँ हूँ ?
दिल कहता है जीता क्यूँ हूँ ?
केदारनाथ" कादर"
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बदल नहीं सकती
जलाकर दिल क्या किस्मत बदल नहीं सकती
वो जो कहते थे अक्सर "बेवफा" मुझको
उनकी क्या आदत ये बदल नहीं सकती
ये बात और है लिखा है किस्मत में डूबना
कोशिशों से क्या इबारत ये बदल नहीं सकती
माना मुश्किल है ठहरना मेरी मौत का यारो
उनके आगोश में क्या मौत ढल नहीं सकती
हमने चाहा है जिसे अपनी रूह की मानिंद
बेवफा "कादर" चुरा नज़रें निकल नहीं सकती
Wednesday 16 June 2010
ये हैं बारिश की बूंदें
ये हैं बारिश की बूंदें
खलिहानों में सोने जैसी
ये हैं बारिश की बूंदें
तपते तन पर हैं राहत
आशिक तन पर चाहत
विरही मन पर तीर जैसी
ये हैं बारिश की बूंदें
बच्चों के उजले चेहरों पर
हैं किलकारी सी बूंदें
मुरझाये पेड़ों पर जीवन जैसी
ये हैं बारिश की बूंदें
खुले नभ नीचे बेघरों को
हैं ये आफत जैसी बूंदें
रचती हैं ये इन्द्रधनुष भी
ये हैं बारिश की बूंदें
नहा संवारकर करती प्रकृति
उजली - नवयौवना सी बूंदें
जीवन के सरे रंगों में "कदर"
ये हैं बारिश की बूंदें
केदारनाथ "कादर"
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हम
बेकली सी ठहरी दिल में, शाम से
जल गए हैं चिराग घरों में यहाँ
रुक गए हो तुम कहाँ, किस काम से
होते होते शाम दर्द भी है जग गया
जब किसी ने पुकारा तुम्हारे नाम से
ख्याल कोई दिल को सुकूं न दे सका
हम भटकते ही रहे बस नाकाम से
न खुदा से, न कोई मसीहा से उम्मीद
"कादर" अब दोस्ती है गम से, जाम से
केदारनाथ "कादर"
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बारिश
ये प्यार की बारिश, तुम कभी बंद न करना
दर्दमंद दिल बहुत हैं, दरे दिल बंद न करना
उठने दो धुआं दिल से, रहने दो सुलगती आग
आएगा फिर कोई, दरे दिल बंद न करना
हाँ ये भी तो हो सकता है, वो लौट ही आये
उम्मीदों की गली दिल में, कभी तंग न करना
उल्फत का सिला अश्क, सुनते रहे मगर
लूटकर भी "कादर" इश्क में, जिक्र न करना
केदारनाथ "कादर"
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डूबने वाले को, जब लेकर हम तरें
जन्म लेते हैं, मरते हैं, सभी हैं जानते
जिंदगी तब है, जब जीते जी मरें
एक दिन मंजिले मौत मिल ही जाएगी
है मजा तब, आज ही राह पर पग धरें
माफ़ हो ही जायेंगी, गुनाहों की सजा
इन्सां हैं, जब बाख़ुशी अपना किया खुद भरें
यूँ तो मरते जीते हैं, लोग कीड़ों की तरह
जीना है, वतन पर जब कोई जीये मरे
माफ़ कर देगा गुनाहों को, " कादर" खुदा
जब किसी के आंसू ,अपनी करनी पर गिरें
केदारनाथ "कादर"
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जिंदगी
जीना मुहाल हो गया, पल पल मरे बगैर
देखा जो हुस्न रपये का, मेरी जेब में
वो मेरे साथ हो गया, इज़ाज़त लिए बगैर
मांगे से मुहब्बत, नहीं मिलती इस जगह
तुम चाहते हो जिंदगी, कीमत दिए बगैर
मुंसिफ-ए- दौरां भी, हैं उसी के हरम में
यहाँ इंसाफ नहीं मिलता, पैसा दिए बगैर
तुम चाहते हो पनाह, जिंदगी भर दिल में
वो नहीं रहता एक रात, सौदा किये बगैर
अब बदलता बक्त है, "कादर" सीख ले
जीने की आदत, कोई शिकवा किये बगैर
केदारनाथ "कादर"
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मैं दर्द हूँ मुसीबतों में ही पला हूँ
अकेला हूँ, नहीं साथ सिवा मेरी खुदी के
इस हुजूम-ए-इन्सां में अकेला ही खड़ा हूँ
दिल में मेरे खुदा है, हूँ मैं बे ठिकाना
आँखों में समंदर है,मैं दरिया की प्यास हूँ
मैं तुम में ही छिपा हूँ देखो तो आइना
मुझे खुद में खुदी ढूँढ़ो मैं तुम में बसा हूँ
मैं न किस्सा हूँ, न ही कोई ग़ज़ल हूँ
मुझे पढ़ के खुद को पढ़ मैं किताब खुला हूँ
क्या अर्ज़ करूं दोस्त, क्या हूँ मैं "कादर"
लम्बे से सफ़र का एक छोटा सा सिरा हूँ
केदारनाथ "कादर"
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परछाईयां हैं उनके मगर नक्से पा नहीं मिलते
अपने में नहीं कोई, भीड़ में खोया शहर
एक रात को छत है मगर घर नहीं मिलते
होटलों में, सभाओं में, ये दिख जायेंगे नेता
इलाके में साहब अपने, कभी पर नहीं मिलते
बैठे हैं कुर्सियों पर अपराधी यहाँ जितने
उतने तो अब जेल के अन्दर नहीं मिलते
मेरी मज़बूरी है "कादर" हाथों में हैं पत्थर
चाहता हूँ मारना, मगर सिर नहीं मिलते
केदारनाथ "कादर"
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ये हैं बारिश की बूंदें
बूंदें हैं ये बारिश की
ये हैं बारिश की बूंदें
खलिहानों में सोने जैसी
ये हैं बारिश की बूंदें
तपते तन पर हैं राहत
आशिक तन पर चाहत
विरही मन पर तीर जैसी
ये हैं बारिश की बूंदें
बच्चों के उजले चेहरों पर
हैं किलकारी सी बूंदें
मुरझाये पेड़ों पर जीवन जैसी
ये हैं बारिश की बूंदें
खुले नभ नीचे बेघरों को
हैं ये आफत जैसी बूंदें
रचती हैं ये इन्द्रधनुष भी
ये हैं बारिश की बूंदें
नहा संवारकर करती प्रकृति
उजली - नवयौवना सी बूंदें
जीवन के सरे रंगों में "कदर"
ये हैं बारिश की बूंदें
केदारनाथ "कादर"
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Tuesday 15 June 2010
ज़िक्र न करना
आ जाये गम गले तक भी, मेरा ज़िक्र न करना
माना अकेले होंगे तुम, हर मोड़ पर -ऐ- दोस्त
रूह जब्त न कर पाएगी सितम, मेरा ज़िक्र न करना
आँखों में उमड़ते रहें चाहे तेरी, अश्कों के समंदर
तुम डूबती कश्तियों से भी, मेरा ज़िक्र न करना
दुश्मन से न कहना बर्बादे मुहब्बत का ये किस्सा
खामोश निग़ाह दोस्तों से भी, मेरा ज़िक्र न करना
न सोचना की अंधेरों में, अकेले हैं हम कहीं
तेरा रोशन चिरागे याद है, मेरा ज़िक्र न करना
हम खुद ही हुए जाते हैं दफ़न अपने सीने में
"कादर" हों सामने भी अगर, मेरा जिक्र न करना
केदारनाथ"कादर"
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Friday 11 June 2010
मैं
जाने मगर किधर को मेरा दिल है जाता
मैं देखूं जिधर भी, आंसू और उदास चेहरे
ऐसा हर एक मंजर मुझको ही है बुलाता
दौलत नहीं है हासिल न ही कोई इल्म है
ग़मगीन दिल से मेरे , है ग़मों का नाता
क्या दीन है धरम है, क्या नाम है तुम्हारा
मुफलिस हर एक भाई, मेरी ही माँ का जाया
कमजोर ओ बेबस मुझे लगता है मेरा साया
मेरे लिए खुदा वो, जिसने रोते हुओं को हंसाया
इन्सान खोजता हूँ, आदमियों के जंगल में
"कादर" मुश्किल से मैंने अपना पता है पाया
केदारनाथ "कादर"
बेटियां और पेड़
इन्हें जहाँ भी लगायें वहीँ उग जाते हैं
और जिन्हें ये देते हैं शीतल हवाएं अपनी
वही लोग इन्हें टुकड़े टुकड़े कर जाते हैं
हर पेड़ में भी एक ईश्वर बसता है
और लोगो हर बेटी में होती है एक माँ
दोनों के बिना जग लगता है शमशान
पर बदवक्त दोनों रहती हैं बेजुबान
पेड़ो से मेरे ईश्वर बढती है हरियाली
बेटियों के पैदा होने से चलता है जहान
दोनों के गले पे रहती मर्दों की कुल्हाड़ी
लेकिन मर्दों पर दोनों का ही एहसान है
फल फ़ूल अगर ये ईश्वर कभी न दे पाएं
सर पर अनगिनत इनके तोहमतें आयें
मर्जी से जग इन्हें मन माना सुनाये
मुह बंद कर दोनों सब कुछ सहती जायें
जब भी चली पेड़ो के गले पर कुल्हाड़ी
कुर्सी, मेज, खिड़की गयी कोई संवारी
औरत के ऊपर हर उम्र में सितम है
बेटी, बीबी या बने या बने दादी नानी
न पेड़ मांगें कुछ, न मांगें कभी नारी
दूसरों की खैर ये दोनों मांगें उम्र सारी
बार बार अग्नि परीक्षाओं में भी जलकर
बार बार बने माँ और छांव प्यारी
" धीयाँ ते रुख" पंजाबी कविता का हिंदी अनुवाद
प्रार्थना
हमें राह दिखा दो खुद से मिलन की भटक न जायें हम
याद नहीं हमें कोई भी वादा, प्रभु वादे कैसे निभाएं हम
आन मिलो प्यारे कब से तड़पें, प्रभु कर दो हम पे रहम
लो न हमारी, हे स्वामी परीक्षा , तेरे बिसरे हुए बालक हम
ज्ञानांजन दो हमको, सत्यपथ पर आगे बढ़ते जायें हम
दोष न देखो न करम विचारो, तेरी शरण में आये हम
दया करो हम पर हे करूणा सागर, भटक न जायें हम
भक्ति नहीं और ज्ञान नहीं है, "कादर" तुम्हें कैसे पाएं हम
हाथ पकड़कर राह दिखा दो, प्रभु कहीं भटक न जायें हम
केदार नाथ "कादर"
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मेरी तन्हाई
मगर प्यारी लगे है याद में, तेरे बाद तन्हाई
तू नहीं जब साथ होती साथ में होती है तन्हाई
तेरी तस्वीर सी तेरे बाद, मुझे लगती है तन्हाई
हजारों लोग तन्हा हैं, अकेली नहीं मेरी तन्हाई
मगर ये दिल हमेशा तुझे ढूंढता रहता है तन्हाई
कभी तुम पास होते हो, तो भी होती है तन्हाई
अगर तुम दूर होते हो, तो हमें डसती है तन्हाई
तुम्हें चाहकर लगता है दोस्त, जिंदगी है तन्हाई
तन्हाई में तेरी मैं खुद से बातें करने लगता हूँ
कहीं घबरा के खुद से , यार तेरा नाम न ले दूँ
तू जल्दी आ के मिल खाने लगी है तेरी तन्हाई
मुझे मालूम है ए - दोस्त अब तू आ न पायेगी
कफस में कैद है तू मौत की, ऐ मेरी जिंदगी
इसलिए मैं ही चल के दो कदम तुझसे मिलूँगा
मिटेगी इस तरह " कादर" इस दिल की तन्हाई.
केदार नाथ "कादर"
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नारी और जीवन के बदलाव
बहने दो जीवन को अपनी हर साँस और मुस्कुराहट से
किसी के लिए एक मुस्कुराहट भी है कीमती जीवन से
और कोई मुस्कुराहटों को मार कर सोचता है जीत गए
लेकिन नारी न कभी हारी वह अनंत की है हमसफर
एक जीवन नहीं कई जीवनों को सहेजती अपनी सांसो से
नारी है जीवन सरिता सी , धूप छांव सा जीवन जीती
मायने कैसे भी हों "कादर" सब ही जाने जाते नारी से
केदार नाथ "कादर"
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Wednesday 9 June 2010
मरा हुआ प्रजातंत्र
तुम्हारा प्रजातंत्र - सिर्फ एक
बुचडखाने की तरह है
जिसके अन्दर हर एक नेता
सफ़ेद कपडे पहने कसाई है
जो जिबह कर देना चाहता है
तुम्हारी हर ख़ुशी- सिर्फ
अपनी ख़ुशी और कुर्सी के लिए
वो निकाल लेना चाहता है -चूसकर
तुम्हारी हड्डियों की मज्जा -ताकि
चिपका रहे कुर्सी से -उल्लू
अपनी मौत तक -तुम्हारी बद्दुआओं से
बहुत खुश होते हो
सबसा बड़ा प्रजातंत्र कहलवाकर
कौन सा तंत्र तुम्हारा काम करता है
न व्यवस्था ,न न्याय और न खुफिया
हर जगह मच्छर से देश
तुम्हारे शरीर पर काटतें हैं
तुम सिर्फ खुजाकर रह जाते हो
तुम्हारे देश के हिजड़े न्यायतंत्र की ताकत
पच्चीस वर्ष बाद २५ हजार मौतों का न्याय
एक देश तुम्हे भूलने को कहता है
तुम्हारी २५ हजार मौतें अतीत मानकर
और तुम भी तैयार हो,कोई सौदा हो जाये
तुम्हारे नेता खा लें -घूस मोटी सी
बनने के लिए मुखिया हिजड़ों की पार्टी का
तुम कानून हाथ में मत लेना
भोपाल में तुम्हारा कोई थोड़े ही मरा था
वो तो भोपाल वाले सोचेंगे
मंच बनायेंगे , प्रजातंत्र हिला देंगे-चीखेंगे
सरकार गिरा देंगे- बार बार चिल्लायेंगे
साले वो भी विपक्ष के कहने पर
तुम ने गिरवी रख दिया है- साहस
बेच दी है-आवाज, पहनी हैं -चूड़ियाँ
तुम अपने देशवासियों के लिए
आवाज नहीं उठा सकते
तुम नपुंसक - प्रजातंत्र का राग अलापते रहो
वो तुम्हारी बहन बेटे बेटियां मारकर
कहते रहेंगे- भूल जाओ पुरानी बातें
नया समझौता जरुरी है- दलाली के लिए
ताकि प्रजातंत्र के पिस्सुयों की औलादें
जिन्दा रह सके, पाप की कमाई की दलाली पर
ऊँचे महलों में, मर्सिडीज गाड़ियों में
हमारी तुम्हारी माँ बेटियों को
कुचलने नोचने के लिए सदा की तरह
मगर तुम मत सोचना , मत जागना
ये प्रजातंत्र है हर काम- नेता करेगा
इसीलिए तो अब इन्सान पैदा नहीं होते
पैदा होते हैं नेता , गली में , नुक्कड़ पर
अभाव की कोख से जन्मे -नाजायज, भूखे
नाख़ून दिखाते , झाग उगलते, बाल नोंचते
तुम्हारा प्रजातंत्र बचाने के लिए
जो बस देख रहे हैं अर्थव्यवस्था की ऊंचाई
जैसे एक बालक- खेत की मेढ़ पर
अपना शिशन पकडे देखता है मूत की धार
जो निचे आते आते रेत हो चुका होता है
केदारनाथ"कादर"
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Tuesday 1 June 2010
कोई
नींदे चुरा गया है
है कोई अजनबी सा
दिल में समां गया है
बातें है पुरकशिश सी
अदाएं है दिल फरेब
कोई जरा सा हंसकर
मन को महका गया है
रखा था जिसको हमने
सबसे अजीज अब तक
आँचल की एक हवा से
दिल को उड़ा गया है
हम दिल पे हाथ रखकर
धुन्ध्ते हैं उस अजनवी को
"कादर" यादों के समंदर में
जो सैलाव उठा गया है
केदारनाथ"कादर"
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नेता जी के नाम
कहा जाता था वहां पर बोतल बंद पानी पंद्रह रुपये में मिलता है. आजादी के साठ साल बाद भी हर चौराहे पर भिखारी दिखाई देतें हैं. हर रोज़ अख़बारों में गंद भरा हुआ परोसा जाता है. समाज को राह दिखाने वाले अख़बार कॉल गर्ल्स के मसाज पार्लर के नंबर छापते हैं , देश को गर्त में धकेलने के लिए, न की उन लोगों का पता पुलिस को देते हैं , वृद्ध केसरी क्लब चला कर , बाप और दादा की हत्या को शहीदी का नाम देकर चंडी चमका रहे हैं. अगर उनके बाप या दादा ने अच्छा कम किया तो इसके लिए उन्हें धन्यवाद, लेकिन कभी ये भी सोचो किस मकसद से ये अख़बार चलाये थे उन्होंने. बाप बेटी साथ बैठकर अख़बार नहीं पढ़ सकते. कहने को हर एक मंत्रालय है, मंत्री हैं नेता हैं पर सब...साल...ए. ... अकल से पैदल सत्ता कामनी की गोद में अपने को स्खलित कर रहे हैं ताकि और भी खूंखार जानवर पैदा हों उनके दूषित रक्त से . कोई नेता तो पढ़ेगा नहीं . शायद कोई चमचा या दिल जला ही कभी उन्हें उनके कर्मों के दर्शन करा दे.
नफरतों से प्यार की, हर हद मिटा दी आपने
दिल में जो रोशन शमा थी वो बुझा दी आपने
जान की बाजी लगा दी आपकी हर बात पे
किस तरह ये जां बचे, कैसी सजा दी आपने
आपकी आमद से दिल का सुकून जाता रहा
जाने किन शैतानों को सदा दी आपने
जख्मे दिल खिल उठे, आपके इस प्यार से
जिंदगी की शक्ल में,क्या मौत दी है आपने
हर उजाला जिंदगी से दूरतर होने लगा
ऐसी बदअमनी हुज़ूर फैला दी है आपने
हम खुदा के बंदा-ए-नाचीज हैं और कुछ नहीं
"कादर" खुदकशी कर ले वो हालत बना दी आपने.
केदारनाथ "कादर"
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नेताओं के नाम
गिरेबां जो अपना अगर देख लोगे
वजूद अपना हर हाल में खो चुकोगे
अगर जो गुनाह खुद का देख लोगे
कितने चरागों को बे वजह बुझाया
खुद जल उठोगे अगर जान लोगे
यक़ीनन यक़ीनन तुम मर चुके हो
क्या सारे जहाँ की तुम जान लोगे
"कादर" अपनी सूरत से भी डरोगे
अगर आईने में उसे देख लोगे
केदारनाथ"कादर"
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