Friday 26 March 2010

आशिक

इतना कमजोर नहीं हूँ की चटक जाऊँगा
ठोकरें खाया हुआ दिल हूँ न घबराऊँगा

मुझसे नफरत का कर लाख इजहार मगर
मैं हूँ आदत से मजबूर, मैं तुम्हे चाहूँगा

मुमकिन है बुझने लगे जीवन का चिराग
मेरा वादा है मैं पागल सा तुम्हे चाहूँगा

रोशनी चाहे हो जाये सूरज से जुदा
तुम्हारे बिन जीवन का पल न एक चाहूँगा

कितना चाहते हो करना आजमाइश मेरी
यार का सीना हूँ "कादर" आग से न घबराऊँगा

केदार नाथ "कादर"

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Thursday 25 March 2010

मिलन

कभी कभी मन में सोचती हूँ कि मैं क्या हूँ ?
तुम्हारी परछाई या तुम्हारी आशाओं का बदन

तुम्हारी जिन्दा मुर्दा इच्छाओं कि कब्रगाह
या तुम्हारे और मेरे देखे हुए सपनों का चमन

जीवन में अनेकों प्रश्न कितने बड़े और टेढ़े
जैसे शांत और भयानक ये नील गगन

बहुत देर तक जोड़े रखा है तुमसे खुद को
अब लगता है कभी कि मैं तुम हो जाऊंगी

बहुत दिनों से ढांप राखी थी जिंदगी क़ी चादर
"कादर" तुमसे मिलने हर दीवार गिराकर आऊँगी

केदार नाथ "कादर"